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गोरखपुर के सिटी हॉस्पिटल में पहली बार डॉ विवेक मिश्रा द्वारा की गयी अत्याधुनिक स्पाईग्लास कोलेनजियोस्कोपी

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पूर्वाञ्चल में पहली बार सिटी हॉस्पिटल में डॉ विवेक मिश्रा द्वारा की गयी अत्याधुनिक स्पाईग्लास कोलेनजियोस्कोपी समय के साथ साथ चाहे वह क्षेत्र कोई भी हो , नई नई तकनीक ने जीवन को आसान करने की राह दिखाई है Iइसी तरह से चिकित्सा क्षेत्र में आए दिन नए नए उपकरण देखने को मिलते हैं ,जिनकी वजह से जटिल से जटिल इलाज को डॉक्टरों द्वारा बड़ी सहजता से किया जाता है ी

पूर्वञ्चल में पहली बार सिटी हॉस्पिटल के गेस्ट्रोएंटेरोलोजिस्ट व लिवर रोग विशेषज्ञ डॉ विवेक मिश्रा द्वारा पित्त की नली की पथरियों को स्पाईग्लास कोलेनजियोस्कोपी चिकित्सा प्रक्रिया से निकाला गया Iडॉ विवेक मिश्रा ने बताया की हॉस्पिटल में एक मरीज भर्ती हुआ जिसे बुखार ,कम रक्तचाप व पीलिया की शिकायत थी Iजांच करने पर पता चला की मरीज की पित्त की नली में बहुत बड़ी पथरी(25 मी.मी) फंसी हुई हैं जिसे पूर्व में इस्तेमाल की जा रही तकनीक से निकालना असंभव था Iपहले मरीज को स्थिर करके स्पाईग्लास एंडोस्कोप द्वारा बड़ी आसानी व सहजता से पथरी को छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़कर निकाला गया Iसाथ ही साथ कुछ और मरीजों का इस नई तकनीक द्वारा ट्यूमर की बायोप्सी भी ली गयी Iडॉ मिश्रा ने बताया की स्पाईग्लास कोलेनजियोस्कोपी एक चिकित्सीय प्रक्रिया है जो पित्त नलिकाओं और पित्ताशय की आंतरिक स्थिति की जाँच और उपचार के लिए की जाती है। इसमें एक विशेष प्रकार का एन्डोस्कोप (स्पाईग्लास) उपयोग किया जाता है, जिसमें एक लचीली ट्यूब होती है जिसके सिरे पर कैमरा और लाइट लगा होता है। इसे मुंह के माध्यम से आंतों में डाला जाता है और पित्त नलिकाओं तक पहुंचाया जाता है, जिससे डॉक्टर को उनकी आंतरिक स्थिति का सीधा दृश्य प्राप्त होता है। इस प्रक्रिया का उपयोग पित्त नलिकाओं में पत्थरों, ट्यूमर, संक्रमण और अन्य असामान्यताओं का पता लगाने और इलाज के लिए किया जाता है।

इस प्रक्रिया का उपयोग तब किया जाता है जब अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, या एमआरआई जैसी पारंपरिक इमेजिंग तकनीकों से पर्याप्त जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती है। स्पाईग्लास कोलांगियोस्कोपी से डॉक्टर बायोप्सी भी ले सकते हैं और कुछ उपचारात्मक कार्यवाही भी कर सकते हैं। यह प्रक्रिया आमतौर पर स्थानीय एनेस्थीसिया के तहत की जाती है और रोगी को असुविधा को कम करने के लिए हल्का सेडेटिव भी दिया जा सकता है।

स्पाईग्लास कोलान्जियोस्कोपी ईएचएल (इलेक्ट्रो हाइड्रॉलिक लिथोट्रिप्सी) लेजर का उपयोग करके स्टोन (पत्थर) तोड़ना एक चिकित्सा प्रक्रिया है जो पित्त नलिकाओं में मौजूद पथरी को निकालने के लिए की जाती है। इस प्रक्रिया में, डॉक्टर एक स्पाईग्लास नामक विशेष एंडोस्कोप का उपयोग करते हैं, जिसे कोलान्जियोस्कोप भी कहा जाता है, जो पित्त नलिकाओं के अंदर देखने और पत्थरों की स्थिति का पता लगाने के लिए होता है। इसके बाद, ईएचएल लेजर का उपयोग किया जाता है, जो पत्थरों को तोड़ने के लिए एक ऊर्जा शॉक वेव उत्पन्न करता है। यह प्रक्रिया तब की जाती है जब पित्त नलिकाओं में पत्थर फंस जाते हैं और उन्हें पारंपरिक तरीकों से नहीं हटाया जा सकता। स्पाईग्लास कोलान्जियोस्कोपी और ईएचएल लेजर की मदद से पत्थरों को छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता है, जो फिर आसानी से बाहर निकाले जा सकते हैं या शरीर द्वारा स्वाभाविक रूप से बाहर निकाल दिए जाते हैं।

डॉ विवेक मिश्रा ने बताया की इस अत्याधुनिक एंडोस्कोप आने की वजह से पूर्वञ्चल के मरीजों को बाहर जाना नहीं पड़ेगा Iइस प्रक्रिया के दौरान डॉ विवेक मिश्रा की टीम में डॉ विकास नारायण सिंह ,टेक्निसियन प्रिंस गुप्ता व किशन आदि मौजूद रहे ी

“गोरखपुर से मनोज मिश्रा की रिपोर्ट “

 

 

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